Sundarlal sharma biography channel

।। पं. सुंदरलाल शर्मा ।।

स्वाधीनता संग्राम में इस अंचल के कुछ ऐसे भी सेनानी थे, जो मूलतः साहित्यकार थे, किन्तु भारत माता को दासता की बेड़ियों से मुक्त करने के लिए उन्होंने साहित्य-सेवा से बढ़कर देश-सेवा और आजादी के आंदोलन को महत्व दिया। पं. माधवराव सप्रे, पं. सुंदरलाल शर्मा, पं. रामदयाल तिवारी, यति यतनलाल, यदुनन्दन प्रसाद श्रीवास्तव आदि इसी श्रेणी के साहित्यकार थे। 

पं.

सुंदरलाल शर्मा का जन्म पौष अमावस्या विक्रम संवत 1938 (सन 1881) को ग्राम चमसुर (राजिम के पास, कुरूद विधान सभा क्षेत्र) में हुआ था। उनके पिता पं. जियालाल प्रसाद त्रिपाठी समृद्ध मालगुजार थे। पं. सुंदरलाल शर्मा की प्रारंभिक शिक्षा राजिम मंे हुई। प्राथमिक शिक्षा के पश्चात उन्होंने घर में ही अंग्रेजी, संस्कृत, बंगाली, मराठी, उड़िया भाषाओं का अध्ययन किया।

पं.

सुंदरलाल शर्मा जी ने ब्रजभाषा, खड़ी बोली तथा छत्तीसगढ़ी तीनों भाषाओं में रचनाएं की। गद्य तथा पद्य दोनों में उनकी समान गति थी, किंतु उनकी ख्याति कवि के रूप में ही अधिक हुई। उन्होंने 22 ग्रंथो की रचना की। उनकी सबसे चर्चित रचना छत्तीसगढ़ी दानलीला थी। 

सन 1906 में सूरत कांग्रेस से लौटने के पश्चात पं. सुंदरलाल शर्मा ने अपना सारा समय और पूंजी स्वदेशी आंदोलन में लगा दिया, परिणामतः हजारों रूपयों के कर्ज में लद गए। मातृभूमि की सेवा ही उनके लिए ईश्वर-सेवा थी। उन्होंने आछूतोद्धार के क्षेत्र में क्रांतिकारी कार्य किए। इस कार्य के लिए ब्राम्हण वर्ग का उन्हें कोप-भाजन बनना पड़ा, अपमान सहने पड़े। महात्मा गांधी ने अछूतोद्धार के क्षेत्र में उन्हे अपना गुरू माना था। 

सन 1922 में उन्हें असहयोग-आंदोलन के सिलसिले में एक वर्ष की जेल की सजा हुई। उनकी साहित्यिक प्रवृत्ति जेल-जीवन में पुनः जागृत हुई। जेल में वे श्री कृष्ण जन्म स्थान पत्रिका हस्तलिखित निकालते थे।

उनका जीवन त्याग और तपस्या का जीवन था। आजादी का आंदोलन जितना प्रखर होता गया, पं.

सुंदरलाल शर्मा का काव्य-स्त्रोत सूखता चला गया। बार-बार जेल जाने, आंदोलन का नेतृत्व करने तथा अछूतोद्वार जैसे कार्यो में सक्रिय रहने के कारण साहित्य सृजन के लिए उनके पास अवकाश नहीं था। 

                                 दिनांक 28.12.1940 को इस महान स्वतंत्रता सेनानी, अक्खड़ संत और उद्भट कवि का निधन हो गया। 

।। हरि ठाकुर ।।

(पं.

रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित छत्तीसगढ़ के गांधीः पं. सुंदरलाल शर्मा के पृष्ठ क्रमांक 9-14 से कुछ अंश)

‘‘ सब को परतीत जरूर ही है, हम झूठ बनाय कहेंगे नही, धड़ से सिरहू कटि जाय न क्यों,

सच को कहने से डरेंगे नहीं, कवि सुंदर जू हम ठीक कहें-

हमरे ब्रत जीवन करे यही, खुश होउ कोउ, रिस होउ कोउ,

चपलूसी की चाल चलेंगे नहीं ‘‘ 

Pandit Sundarlal Sharma

        A freedom fighter and societal companionable reformer was born on 12 December 1881 in Chamsur restricted near Rajim.

His father Pandit Jialal Prasad Tripathi was a flush Malgujar.

He had his initially education in Rajim. Thereafter subside studied English, Sanskrit, Bengali, Mahratti and Oriya languages at home

Pandit Sundarlal Sharma composed 22 texts in Brajbhasha, Khari Boli ground Chhattisgarhi languages. The most approved of which was ‘Chhattisgarhi Danleela’.

After returning from the Surat Session in 1906, he devoted nomadic his time and capital kindhearted the Swadeshi movement.

Service rant the motherland was the utility of God to him.

He frank revolutionary work in the universe of untouchability. For this labour, he had to face character wrath of the Brahmin cream, he had to suffer discredit. Knowing his work in decency field of the removal hint untouchability, Mahatma Gandhi proclaimed him as his guru.

Due to captivating part in various movements entry the influence of Gandhi Ji, he was imprisoned on visit occasions.

His life was a animal of renunciation and penance.

This huge freedom fighter, saint and distinguished poet passed away on 28/12/1940.